सखीरूप से मानसी सेवा और श्री कृष्ण का रसगुल्ला –
ब्रज के परम रसिक संत बाबा श्री गौरांग दास जी को एकबार भगवान ने स्वप्न दिया कि मेरा एक विग्रह गिरिराज जी मे अमुक स्थान पर है, उसको निकालकर नित्य सेवा करो। बाबा बड़ी प्रेम से ठाकुर जी की सेवा करते । ठाकुर जी रोज बाबा से कुछ न कुछ मांगने लगे की आज मुकुट चाहिए, आज बंशी चाहिए, आज मखान चाहिए , आज बढ़िया पोशाख चाहिए । बाबा ने कहा – मै तो एक लंगोटी वाला बाबा, बिना धन के यह सब चीजे कहां से लाऊंगा? बाबा चलकर संत श्री जगदीश दास जी के पास गए और सारी बात बतायी । उन्होंने कहा – अपनी असमर्थता व्यक्त कर दो और मानसी मे ठाकुर जी की सारी मांगे पूरी कर दिया करो । अब बाबा नित्य मानसी सेवा करने लगे ।
एक दिन स्नान कर के भजन करने बैठे और जब उठे तो शिष्यों ने देखा कि उनके कमर और लंगोट पर शक्कर की चाशनी (शक्कर पाक) लगी थी।शिष्यों ने पूछा – बाबा ये चाशनी कैसे लग गयी ? आप तो स्नान करके भजन करने बैठे थे । बाबा ने अपनी मानसी सेवा को गुप्त रखना चाहा और कहा – कुछ नही हुआ, कुछ नही हुआ । जब शिष्यों ने आग्रह करके पूछा तब बताया कि आज मानसी सेवा में मैने सोचा की शरीर से तो मै बंगाली हूं, रसगुल्ला अच्छे बना लूंगा और श्री प्रिया लाल जी को बडे सुंदर रसगुल्ला बनाकर खिलाऊंगा ।
मोटे मोटे रसगुल्ला बनाकर मैने श्री गुरु सखी के हाथ मे दिए और उन्होंने श्री राधा कृष्ण को दिए । राधारानी तो ठीक तरह से तोड तोड कर रसगुल्ला खाने लगी परंतु नटखट ठाकुर जी ने तो बडा सा रसगुल्ला एक बार मे ही मुख में डाल दिया और जैसे ही मुख में दबाया तो बगल मे सखी रूप मे मै ही खड़ा था । ठाकुर जी के उस रसगुल्ले का रस उड़कर मेरे शरीर पर लग गया ।
सिद्ध संतो की कथा देवता आदि भी सुनते है –
एक बार भगवत निवास, वृंदावन मे श्रीपाद गौरांग दास बाबाजी भगवान की कथा कह रहे थे । कथा खुले मे होती थी, केवल एक व्यास जी के लिए आसान बिछता था और बाकी सब श्रोता रज में ही बैठा करते । कथा मे श्रीरास लीला का वर्णन करते हुए कहां – जब श्री वृंदावन बिहारी जी गोपियों के संग रास कर रहे थे तब देवताओं को तो रास का दर्शन हुए नही, उन्हें केवल एक नीला तेज दिखाई दिया । उस प्रकाश मंडल को देखकर देवताओं ने वहां फूल बरसाए । जैसे उन्होंने यह प्रसंग सुनाया उसी समय चमकीले सफेद रंग के अलौकिक मोटे मोटे फूल आकाश से बरसने लगे । पहला फूल भागवत जी की पोथी पर गिरा, दूसरा फूल बाबा के सर पर गिरा । उसके बाद पूरा परिसर फूलों से भर गया । सर्वत्र दिव्य सुगंध आने लगी । सब श्रोताओं ने देखा की यह किस वृक्ष के फूल है, ऐसे फूल कभी देखे नही, ऐसी सुगंध कभी मिली नही । श्रोताओं मे श्री रामकृष्ण दास (पंडित बाबाजी) भी बैठे थे, उन्होने श्रोताओं से कहां – गौरांग दास की कथा मे देवताओं ने फूल बरसाए है । यह फूल स्वर्ग के वृक्षो के है । बहुत से श्रोता वह फूल अपने साथ घर ले गए परंतु दो तीन दिन बाद वह फूल अंतर्धान हो गए, उसका कोई नमो निशान तक नही मिल पाया ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
भागवत निवास के संतों के श्रीमुख से सुना हुआ प्रसंग ।
Thank you🙏🙏🙏
On Wed, 9 Dec 2020, 12:12 श्री भक्तमाल Bhaktamal katha, wrote:
> श्री गणेशदास कृपाप्रसाद posted: “सखीरूप से मानसी सेवा और श्री कृष्ण का
> रसगुल्ला – ब्रज के परम रसिक संत बाबा श्री गौरांग दास जी को एकबार भगवान ने
> स्वप्न दिया कि मेरा एक विग्रह गिरिराज जी मे अमुक स्थान पर है, उसको निकालकर
> नित्य सेवा करो। बाबा बड़ी प्रेम से ठाकुर जी की सेवा करते । ठाकुर जी”
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